पीना
क्रिया
- किसी तरल वस्तु को घूँट घूँट करके गले के नीचे उतारना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
पीना ^१ क्रि॰ स॰ [सं॰ पान] किसी तरल वस्तु को घूँट घूँट करके गले के नीचे उतारना । जल या जलसदृश वस्तु को मुँह के द्वारा पेट में पहुँचाना । पैट पदार्थ को मुख द्वारा ग्रहण करना । घूँटना । पान करना । जैसे, पानी पीना, शरबत पीना, दूध पीना आदि । संयो॰ क्रि॰—जाना ।—डालना ।—लेना ।
२. किसी बात को दबा देना । किसी कार्य के संबंध में वचन या कार्य से कुछ न करना । किसी संबंध में सर्वथा मौन धारण कर लेना । पूर्ण उपेक्षा करना । किसी घटना के संबंध में अपनी स्थिति ऐसी कर लेना जिससे उससे पूर्ण असंबंध प्रकट हो । जैसे,—इस मामले को वह इस प्रकार पी जायगा; ऐसी आशा तो नहीं थी ।
३. (गाली, अपमान आदि पर) क्रोध या उत्तेजना न प्रकट करना । सह जाना । बरदाश्त करना । जैसे,—इस भारी अपमान को वह इस तरह पी गया मानों कुछ हुआ ही नहीं ।
४. किसी मनो- विकार को भीतर ही भीतर दबा देना । मनोभाव को बिना प्रकट किए ही नष्ट कर देना । मारना । जैसे, गुस्सा पीना ।
५. किसी मनोविकार का कुछ भी अनुभव न करना ।
पीना ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पीडन (= पेरना) ] तिल, तीसी आदि की खली । उ॰—बिना विचार विवेक भए सब एकै घानी । पीना भा संसार जाठि ऊपर मर्रानी ।—पलटू॰, भा॰ १, पृ॰ ५९ ।
पीना ^३ संज्ञा पुं॰ [देश॰] डाट । डट्टा (लश॰) ।