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पीपल

विक्षनरी से
पीपल

प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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पीपल ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पिप्पल] बरगद की जाति का एक /?/सिद्ध वृक्ष जो भारत में प्रायः सभी स्थानों पर अधिकता से पाया जाता है । विशेष—यह वृक्ष ऊँचाई में बरगद के समान ही होता है, पर इसमें उसकी तरह जटाएँ नहीं फूटतीं । पत्ते इसके गोल होते हैं और आगे की और लंबी गावदुम नोक होती है । इसकी छाल सफेद और चिकनी होती है । लकड़ी पोली और कमजोर होती है और जलाने के सिवा और किसी काम की नहीं होती । इसका गोदा (फल) बरगद के गोदे की अपेक्षा छोटा और चिपटा तथा पकने पर यथेष्ट मीठा होता है । गोते लगने का समय बैसाख जेठ है । इसकी डालियों पर लाख के कीड़े पैदा होते हैं और पाले जाते हैं । बस यही इसका विशेष उपयोग है । गोदे बच्चे खाते हैं और पत्ते बकरियों और ऊँटों, हाथियों को खिलाए जाते हैं । छाल के रेशों से ब्रह्मा (बर्मा) वाले एक प्रकार का हरा कागज बनाते हैं । पुराणानुसार पीपल अत्यंत पवित्र और पूजनीय है । इसके रोपण करने का अक्षय पुण्य लिखा है । पद्यपुराण के अनुसार पार्वती के शाप से जिस प्रकार शिव को बरगद और ब्रह्मा को पाकड़ के रूप में अवतार लेना पड़ा उसी प्रकार विष्णु को पीपल का रूप ग्रहण करना पड़ा । भगवदगीता में भी श्रीकृष्ण ने कहा है कि वृक्षों में मुझे पीपल जानो । हिंदू लोग बड़ी श्रद्धा से इसकी पूजा और प्रदक्षिणा करते हैं और इसकी लकड़ी काटना या जलाना पाप समझते हैं । दो तीन विशेष संस्कारों में, जैसे, मकान की नींव रखना, उपनयन आदि में इसकी लकड़ी काम में लाई जाती है । बौदध लोग भी पीपल को परम पवित्र मानते हैं, क्योंकि बुदध को संबोधि की प्राप्ति पीपल के पेड़ के नीचे ही हुई थी । वह वृक्ष बोधिद्रुम के नाम से प्रसिदध है । वैद्यक के अनुसार इसके पके फल शीतल, अतिशय हृद्य तथा रक्तपित्त, विष, दाह, छर्दि, शोष, अरुचि और योनिदोष के नाशक हैं । छाल संकोचक है । मुलायम छाल और नए निकले हुए पत्ते पुराने प्रमेह की उत्तम औषध है । फल का चूर्ण सेवन करने से क्षुधावृदि्ध और कोष्ठशुदि्ध होती है । फलों के भीतर के बीज शीतल और धातु परिवदर्धक माने जाते हैं । पर्या॰—बोधिद्रुम । चलदल । पिप्पल । कुंजराशन । अच्युता- वास । चलपत्र । पवित्रक । शुभद । याज्ञिक । गजभक्षण । श्रीमान् । क्षीरद्रुम । विप्र । मांगल्य । श्यामलय । गुह्यपुण्य । सेव्य । सत्य । शुचिद्रुम । धनुवृक्ष ।

पीपल ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ पिप्पली] एक लता जिसकी कलियाँ प्रसिद्ध ओषधि हैं । विशेष—इसेक पत्ते पान के समान होते हैं । कलियाँ तीन चार अंगुल लंबी शहतूत के आकर की होती हैं और उनका पृष्ठभा ग भी वैसा ही दानेदार होता है । इसका रंग मटमैला और स्वाद तीखा होता है । छोटी कलियों को छोटी पीपल और बड़ी तथा किंचित् मोटी कलियों को बड़ी पीपल कहते हैं । ओषधि के लिये अधिकतर छोटी ही काम में लाई जाती है । वैद्यक के अनुसार पीपल (फली) किंचित् उष्ण, चरपरी, स्निग्ध, पाक में स्वादिष्ट, वीर्यवर्धक, दीपन, रसायन हलकी, रेचक तथा कफ, वात, श्वास, कास, उदररोग, ज्वर, कुष्ठ, प्रमेह, गुल्म, क्षयरोग, बवासीर, प्लीहा, शूल और आमवात को दूर करनेवाली मानी जाती है । पर्या॰—पिप्पली । मागधी । कृष्णा । चपला । चंचला । उपकुल्ला । कोल्या । वैदेही । तिक्ततंडुला । उष्णा । शौंडी । कोला । कटी । एरंडा । मगधा । कृकला । कटुबीजा । कारंगी । दंतकफा । मगधोदभवा ।