पुतली
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]पुतली संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ पुतला]
१. लकड़ी, मिट्टी, धातु, कपड़े आदि की बनी हुई स्त्री की आकृति या मूर्ति विश्षतः वह जो विनोद या क्रीड़ा (खेल) के लिये हो । गुड़िया ।
२. आँख का काल भाग जिसके बीच में वह छेद होता है जिससे होकर प्रकाश की किरणें भीतर जाती हैं और पदार्थों का प्रतिबिंब उपस्थित करती हैं । नेत्र के ज्योतिष्केंद्र के चारों ओर का कृष्णमंडल । विशेष—दूसरे की आँख पर दृष्टि गड़ाकर देखनेवाले को इस काले मडल के बीच के तिल में अपना प्रतिबिंब पुतली के आकार का दिखाई देता है इसी से यह नाम पड़ा । मुहा॰—पुतली उलटना या फिर जाना = (१) आँखें पथरा जाना । नेत्र स्तब्ध होना । (मरणचिह्न) । (२) घमंड हो जाना ।
३. कपड़ा बुनने की कला या मशीन । यौ॰—पुतलीघर = वह स्थान जहाँ कपड़ा बुनने के लिये मशीनें बैठाई गई हों । कपड़ा बुनने की मिल ।
४. किसी स्त्री की सुकुमारता और सुंदरता सूचित करने के लिये व्यवहृत शब्द । जैसे,—वह स्त्री क्या है पुतली है ।
५. घोड़े की टाप का वह मांस जो मेढक की तरह निकला होता है ।