पुरश्चरण

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पुरश्चरण संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. किसी कार्य की सिदि्ध के लिये पहले से ही उपाय सोचना और अनुष्ठान करना ।

२. हवन आदि के समय किसी विशिष्ट देवता का नाम जप (को॰) ।

३. किसी मंत्र स्तोत्र आदि को किसी अभीष्ट कार्य की सिदि्ध के लिये किसी नियत समय और परिमाण तक नियमपूर्वक जपना या पाठ करना । प्रयोग । उ— मैं अब पुरश्चरण करने जाता हूँ, आप विघ्नों का निषेध कर दीजिए ।— भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ २, पृ॰ ३०३ ।