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पुलक

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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पुलक संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. रोमांच । प्रेम, हर्ष आदि के उद्वेग से रोमकूपों (छिदों) का प्रफुल्ल होना । त्वक्कंप ।

२. एक तुच्छ धान्य । एक प्रकार का मोटा अन्न ।

३. एक प्रकार का रत्न । एक नग या बहुमुल्य पत्थर । याकूत । चुनरी । महताब । विशेष— यह भारत में कई स्थानों पर होता है पर राजपूताने का सबसे अच्छा होता है । दक्षिण में यह पत्थर निशाखपटम, गोदावरी, त्रिचिनापली और तिनावली जिलों में निकलता है । यह अनेक रंगों का होता है— सफेद, हरा, पीला, लाल, काला, चितकबरा । जितने भेद इस पत्थर के होते हैं उतने और किसी पत्थर के नहीं होते । यह देखने में कुछ दानेदार होता है । इसके द्वारा मानिक और नीलम कट सकते हैं ।

४. शरीर में पड़नेवाला एक कीड़ा ।

५. रत्नों का एक दोष ।

६. हाथी का रातिब ।

७. हरताल ।

८. एक प्रकार का मद्यपात्र ।

९. एक प्रकार की राई ।

१०. एक गंधर्व का नाम ।

११. एकप्रकार का गेरू । गिरिमारी ।

१२. एक प्रकार का कंद ।