पेच
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]पेच संज्ञा पुं॰ [फा़॰]
१. घुमाव । फिराव । लपेट । फेर । चक्कर ।
२. उलझन । झंझट । बखेड़ा । कठिनता । उ॰—कागज करम करतूति के उठाय धरे पचि पचि पेच में परे हैं प्रेतनाह अब ।—पद्माकर (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—डालना । पड़ना । विशेष—उक्त दोनों अर्थो में कही कहीं लोग इसको स्त्रीलिंग भी बोलते हैं । गोस्वामी तुलसीदास जी ने एक स्थान पर इसका व्यवहार स्त्रीलिंग में ही किया है । यथा—सोचत जनक पोच पेच परि गई है ।—तुलसी ग्रं॰, पृ॰ ३१३ ।
३. चालाकी । चालबाजी । धूर्तता । क्रि॰ प्र॰—पड़ना ।—चलना ।
४. पगड़ी का फेरा । पगड़ी की लपेट । क्रि॰ प्र॰—कसना ।—बाँधना ।—देना ।
५. किसी प्रकार की कल । यंत्र । मशीन । जैसे, रूई का पेच ।
६. यंत्र का कोई विशेष अंग जिसके सहारे कोई विशेष कार्य होता हो । मशीन का पुरजा ।
७. यंत्र का वह विशेष अंग जिसको दबाने, घुमाने या हिलाने आदि से वह यंत्र अथवा उसका कोई अंश चलता या रुकता हो । क्रि॰ प्र॰—घुमाना ।—चलाना ।—दबाना । मुहा॰—पेट घुमाना = ऐसी युक्ति करना जिससे किसी के विचार या कार्य आदि का रुख बदल जाय । तरकीब से किसी का मन फेरना । पेच हाथ में होना = किसी के विचारों को परिवर्तन करने की शक्ति होना । प्रवृत्ति आदि बदलने का सामर्थ्य होना ।
८. वह कील या काँटा जिसके नुकीले आधे भाग पर चक्करदार गडा़रियाँ बनी होती हैं और जो ठोककर नहीं बल्कि घुमाकर जड़ा जाता है । स्क्रू । क्रि॰ प्र॰—कसना ।—खोलना ।—जड़ना ।—निकालना ।
९. पतंग लड़ने के समय दो या अधिक पतंगों के डोर का एक दूसरे में फँस जाना । क्रि॰ प्र॰—डालना । मुहा॰—पेच काटना = दूसरे की गुड्डी या पतंग की डोर में अपनी डोर फँसाकर उसकी डोर काटना । गुड्डी या पतंग काटना । पेच लड़ाना = दूसरे की पतंग काटने के लिये उसकी डोर में अपनी डोर फँसाना । पेच छुटाना = दो पतंगों की फँसी हुई डोर का अलग हो जाना ।
१०. कुश्ती में वह विशेष क्रिया या घात जिससे प्रतिद्वंद्वी पछाड़ा जाय । कुश्ती में दूसरे को पछाड़ने की युक्ति । उ॰—इक एक पुहुमि पछार देत उछारि पुनि उठि धाय । रह सावधान बखान करि पूनि गँसन पेच लगाया ।—रघुराज (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—चलना ।—मारना ।—लगाना ।
११. युक्ति । तरकीब । क्रि॰ प्र॰—निकालना ।
१२. तबले के किसी परन या ताल के बोल में से कोई एक टुकड़ा निकालकर उसके स्थान पर ठीक उतना ही बड़ा दूसरा कोई टुकड़ा लगा देना । क्रि॰ प्र॰—लगाना ।
१३. एक प्रकार का आभूषण जो टोपी या पगड़ी में सामने की ओर खोँसा या लगाया जाता है । सिरपेच ।
१४. सिरपेच की तरह का एक प्रकार का आभूषण जो कानों में पहना जाता है । गोशपेच । उ॰—गोशपेच कुंड़ल कलँगी सिरपेच पेच पेचन ते खैंचि बिन बेंचे वारि आयो है ।—पद्माकर (शब्द॰) ।
१५. पेचिश । पेट का मरोड़ । दे॰ 'पेचिश' । क्रि॰ प्र॰—उठना ।—पड़ना ।
१६. दे॰ 'पेचताब' ।