पैर
संज्ञा
शरीर का एक अंग, चरन
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
पैर ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पद + दण्ड, प्रा॰ पयदण्ड, अप॰ पयँड़]
१. वह अंग या अवयव जिसपर खड़े होने पर शरीर का सारा भार रहता है और जिससे प्राणी चलते फिरते हैं । गतिसाधक अंग । पाँव । चरण । विशेष—दे॰ 'पाँव' । पैर शब्द से कभी कभी एड़ी से पंजे तक का भाग ही समझा जाता है । मुहा॰—पैर छूटना = मासिक धर्म अधिक होना । रज:स्राव अधिक होना । पैर की जूती = अत्यंत तुच्छ । दासी । सेविका । उ॰—खैर, पैर की जूती जोरू, न सही एक, दूसरी आती, पर जवान लड़के की सुध कर साँप लोटते, फटती छाती ।— ग्राम्या, पृ॰ २५ । ( और मुहा॰ दे॰ 'पाँव' शब्द) ।
२. धूल आदि पर पड़ा हुआ पैर का चिह्न । पैर का निशान । जैसे,—बालू पर पडे हुए पैर देखते चले जाओ ।
पैर ^२ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ पायल, पायर]
१. वह स्थान जहाँ खेत से कटकर आई फसल दाना झाड़ने के लिये फैलाई जाती है । खलियान ।
२. खेत से कटकर आए डंठल सहित अनाज का अटाला ।
पैर † ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ प्रदर] प्रदर रोग ।
पैर उठान संज्ञा पुं॰ [हिं॰ पैर + उठाना] कुश्ती का एक पेंच जिसमें बाँया पैर आगे बढ़ाकर बाएँ हाथ से जोड़ की छाती पर धक्का देते और उसी समय दहने हाथ से उसके पैर के घुटने को उठाकर और बायाँ पैर उसके दहने पैर में अड़ाकर फुरती से उसे अपनी ओर खींचकर चित कर देते हैं ।