पोँछना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]पोँछना ^१ क्रि॰ स॰ [सं॰ प्रोच्छन, प्रा॰ पोंछन] लगी हुई गीली वस्तु को जोर से हाथ या कपडा़ आदि से फेरकर उठाना या हटाना । काछना । जैसे, आँख से आँसू पोँछना, कागज पर पडी स्याही पोंछना, कटोरे में लगा हुआ घी पोंछकर खा जाना, नहाने के बाद गीला बदन पोंछना । उ॰—(क) सुनि के उतर आँसु पुनि पोंछे । कौन पंख बाँधा बुधि ओछे ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) पोंछि डारे अंजन अँगोछि डारे अंगराग, दूर कीने भूषण, उतारि अँग अंग ते ।—रघुनाथ (शब्द॰) ।
२. पडी हुई गर्द, मैल आदि को हाथ या कपडा़ जोर से फेरकर दूर करना । रगड़कर साफ करना । जैसे,—कुर्सी पर गर्द पडी़ है पोंछ दो । पैर पोंछकर तब फर्श फर आओ । उ॰—मानहु बिधि तन अच्छ छबि स्वच्छ राखिबे काज । दृग पग पोंछन को किए भूखन पायंदाज ।—बिहारी (शब्द॰) । संयो॰ क्रि॰—डालना ।—देना ।—लेना । यौ॰—झाडू़ पोंछ । विशेष—जो वस्तु लगी या पडी़ हो तथा जिसपर कोई वस्तु लगी या पडी़ हो, अर्थात् आधार और आधेय दोनों इस क्रिया के कर्म होते हैं । जैसे, कटोरा पोंछना, पैर में लगी हुई गर्द पोंछना कटोरे में लगा घी पोंछना, पैर पोंछना । झटके से साफ करने को झाड़ना और रगड़कर साफ करने को पोंछना कहते हैं ।
पोँछना ^२ संज्ञा पुं॰ [स्त्री॰ पोंछना] पोंछने का कपडा़ । वह कपडा़ जो पोंछने के लिये हो ।