पोर

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पोर ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ पर्व]

१. उँगली की गाँठ या जोड़ जहाँ से वह भुक सकती है ।

२. उँगली में दो गाँठों या जोड़ों के बीच की जगह । उँगली का वर भाग जो दो गाँठों के बीच हो ।

३. ईख, बाँस, नरसल, सरकंडे आदि का वर भाग जो दो गाँठों के बीच हो । उ॰—(क) प्रीति सीखिए ईख सो पोर पोर रस होय । (शब्द॰) (ख) पोर पोर तन आपनौ अनत बिधायो जाय । तब मुरली नंदलाल पै भई सुहागिन आय ।—स॰ सप्तक पृ॰ २१० । यौ॰—पोर पोर = पोर पोर में ।

४. रीढ़ । पीठ । उ॰—मनमोहन खेलत चौगान । द्वारावती कोट कंचन में रच्यो रुचिर मैदान । यादव वीर बराए इक इक, इक हलधर, इक अपनी ओर । निकसे सबै कुँवर असवारी उच्चश्रवा के पोर ।—सूर (शब्द॰) ।

पोर ^२ संज्ञा पुं॰ [?] जहाज की रखवाली या चौकसी करनेवाले कर्मचारी या मल्लाह । (लश॰) ।