पौन
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]पौन पुनिक वि॰ [सं॰] [वि॰ स्त्री॰ पौनःपुनिकी] जो बार बार हो । फिर फिर होनेवाला ।
पौन ^१ संज्ञा पुं॰, स्त्री॰ [सं॰ पवन]
१. वायु । हवा । उ॰—तुव जस सीतल पौन परसि चटकी गुलाब की कलियाँ ।—भार- तेंदु ग्रं॰, भा॰ १, पृ॰ २७२ । यौ॰—पौन का पूत = (१) हनुमान । (२) नाग । सर्प (वेग के कारण) ।
२. जीव । प्राण । जीवात्मा । उ॰—नौ द्वारे का पींजरा तामें पंछी पौन । रहने को आचरज है गए अचंभा कौन ।—कबीर (शब्द॰) ।
२. प्रेतात्मा । प्रेत । भूत । मुहा॰—पौन चलाना या मरना = जादू करना । टोना चलाना । मूठ चलाना । प्रयोग करना । पौन बिठाना = (किसी पर) भूत करना । किसी के पीछे लगाना ।
पौन ^२ वि॰ [सं॰ पाद + ऊन=पादोन, प्रा॰ पाओन] एक में से चौथाई कम । तीन चौथाई । जैसे,—पौन घंटे में आएँगे ।
पौन ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पवन] ठगण का एक भेद जिसमें पहले गुरु पीछे लघु होते हैं ।