पौरी

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पौरी ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ प्रतोली, प्रा॰ पओली] घर के भीतर का वह भाग जो द्वार में प्रवेश करते ही पडे़ और थोड़ी दूर तक लंबी कोठरी या गली के रूप में चला गया हो । डयौढ़ी । उ॰—(क) सेए सीताराम नहिं भजे न शंकर गौरि । जनम गँवायो बादि ही परत पराई पौरि ।—तुलसी (शब्द॰) (ख) राजा ! इक पंडित पौरि तुम्हारी ।—सूर (शब्द॰) । (ग) चाह भरी अति रिस भरी बिरह भरी सब बात । कोरि सँदेसे दुहुन के चल पौरि लौं जात ।—बिहारी (शब्द॰) । (घ) पौरि लौं खेलन जाती न तो इन आलिन के मत में परती क्यों ?—देव (शब्द॰) ।

पौरी † ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ पैर] सीढ़ी । पैड़ी । उ॰—का बरनौं अस ऊँच तुखारा । दुइ पोरी पहुँचे असवारा ।—जायसी (शब्द॰) ।

पौरी † ^३ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ पाँव + री] खड़ाऊँ । उ॰—पाँयन पहिरि लेहु सभ पौरी । काँट धँसे न गडै़ अँकरौरी ।—जायसी (शब्द॰) ।