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प्याज

विक्षनरी से
प्याज

प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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प्याज संज्ञा पुं॰ [फा॰ प्याज़ या पियाज] एक प्रसिद्ध कंद जो बिलकुल गोल गाँठ के आकार का होता है और जिसके पत्ते पतले लंबे और सुंगधराज के पत्तों के आकार के होते हैं । विशेष—इसकी गाँठ में ऊपर से नीचे तकत केवल छिलके ही छिलके होते हैं । यह कंद प्रायः सारे भारत में होता है और तरकारी या माँस के मसाले के काम में आता है । कहीं कहीं इसका उपयोग औषधों आदि में भी होता है । यह बहुत अधिक पुष्ट माना जाता है । इसकी गंध बहुत उग्र और अप्रिय होती है जिसके कारण इसका अधिक व्यवहार करनेवालों के मुँह और कभी कभी शरीर या पसीने से भी बिकट दुर्गंध निकलती है । इसी लिये हिंदुओं में इसके खाने का बहुत अधिक निषेध है । यह बहुत दिनो तक रखा जा सकता है और कम सड़ता है । वैद्यक के अनुसार इसके गुण प्रायः लहुसन के समान ही है । वैद्यक में इसे माँस और वीर्यवर्धक, पाचक, सारक, तीक्ष्ण, कंठशोधक, भारी, पित्त और रक्तवर्धक, बलकारक, मेधा जनक, आँखों के लिये हितकारी रसायन, तथा जीर्णज्वर, गुल्म, अरुचि, खाँएसी, शोथ, आमदोष, कुष्ठ, अग्निमांद्य, कृमि, वायु और श्वास आदि का नाशक माना जाता है । इसमें से एक प्रकार का तेल भी निकलता है जो उत्तेजक और चेतनाजनक माना जाता है । प्याज को कुचलने से जो रस निकलता है वह बिच्छु आदि के काटे हुए स्थान पर लगाया भी जाता है और मूर्छा के समय उसे सुँघाने से चेतना आती है । पर्या॰—सुकंदक । लोहिककंद । तीक्ष्णकंद । उष्ण । मुखदूषण । शूद्रप्रिय । कृमिघ्न । मुखगंधक । बहुपत्र । विश्व- गंध । रोचन । पलांडु ।