प्रकृति

विक्षनरी से

हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

प्रकृति संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. स्वभाव । मूल या प्रधान गुण जो सदा बना रहे । तासीर । जैसे,— आलू की प्रकृति गरम है ।

२. प्राणी की प्रधान प्रवृत्ति । न छूटनेवाली विशेषता । स्वभाव । मिजाज । जैसे,— वह बड़ी खोटी प्रकृति का मनुष्य है ।

३. जगत् का मूल बीज । वह मूल शक्ति अनेक रूपात्मक जगत् जिसका विकास है । जगत् का उपादान कारण । कुदरत । विशेष— साख्य में पुरुष और प्रकृति से अतिरिक्त और कोई तीसरी वस्तु नहीं मानी गई है । जगत् प्रकृति का ही विकार अर्थात् अनेक रूपों में प्रवर्तन है । प्रकृति की विकृति या परिणाम ही जगत् है । जिस प्रकार एकरूपता या निर्वि- शेषता से परिणाम द्वारा अनेकरूपता की ओर सर्गोन्मुख गतिहोती है उसी प्रकार फिर अनेकरूपता से क्रमशः उस एकरूपता की ओर गति होती है जिसे साम्यावस्था, प्रलयावस्था या स्वरूपावस्था कहते हैं । प्रथम प्रकार की गतिपरंपरा को विरूप परिणाम और दूसरी प्रकार की गतिपरंपरा को स्वरूप परिणाम कहते हैं । स्वरूपावस्था में प्रकृति अव्यक्त रहती है, व्यक्त होने पर ही वह जगत् कहलाती है । इन्हीं दोनों परिणामों के अनुसार जगत् बनता और बिगड़ता रहता है । प्रकृति के परिणाम का क्रम इस प्रकार कहा गया है— प्रकृति के महत्तत्व (बुदि्ध), महत्तत्व से अहंकार अहकार से पंचतन्मात्र (शब्द तन्मात्र, रस तन्मात्र इत्यादि), पंचतन्मात्र से एकादश इंद्रिय (पंच ज्ञानेंद्रिय, पंच कर्मेंद्रिय और मन) और उनसे फिर पंच- महाभूत । इस प्रकार ये चौबीसों तत्व जिनसे संसार बना है प्रकृति ही के परिणाम है । जो क्रम कहा गया है वह विरूप परिणाम का है । स्वरूप परिमाम का क्रम उलटा होता है, अर्थात् उसमें पंचमहाभूत एकादश इंद्रिय रूप में, फिर इंद्रिय तन्मात्र रूप में, तन्मात्र अहंकार रूप में— इसी क्रम से सारा जगत् फिर नष्ट होकर अपने मूल प्रकृति रूप में आ जाता है । विशेष दे॰— 'सांख्य') ।

४. राजा, आमात्य, जनपद, दुर्ग, कोश, दंड और मित्र इन सात अंगों से युक्त राष्ट्र या राज्य । विशेष— इसी को शुक्रनीति में 'सप्तांग' राज्य' कहा है । उसमें राजा की सिर से, आमात्य की आँख से, मित्र की कान से, कोश की मुख से, दंड़ या सेना की भुजा से, दुर्ग की हाथ से और जनपद की पैर से उपमा दी गई है ।

५. राज्य के अधिकारी कार्यकर्ता जो आठ कहे गए हैं । विशेष दे॰ 'अष्ट प्रकृति' ।

५. परमात्मा (को॰) ।

६. नारी । स्त्री (को॰) ।

७. स्त्री या पुरुष की जननेंद्रिय (को॰) ।

८. माता । जननी (को॰) ।

९. माया (को॰) ।

१०. कारीगर । शिल्पकार ।

११. एक छंद जिसमें २१, २१ अक्षर प्रत्येक चरण में हों (को॰) ।

१२. प्रजा (को॰) ।

१३. पशु । जंतु (को॰) ।

१४. व्याकरण में वह मूल शब्द जिसमें प्रत्यय लगते हैँ ।

१५. जीवनक्रम (को॰) ।

१६. (गणित में) निरूपक । गुणक (को॰) । १७ । चराचर जगत् (को॰) ।

१८. सृष्टि के मूलभूत पाँच तत्व । पंचमहा भूत (को॰) ।