प्रगतिवाद

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

प्रगतिवाद संज्ञा पुं॰ [सं॰ प्रगति + वाद]

१. वह सिद्धांत जिसमें साहित्य को सामाजिक विकास का साधन माना जाता है ।

२. सामान्य जनजीवन को साहित्य में व्यक्त करमे का सिद्धांत । एक साहित्यिक विचारधारा, जिसमें सामाजिक यथार्थ और मार्क्स के आर्थिक क्षेत्र में प्रतिपादित सिद्धातों के लिये विशेष आग्रह रहता है । विशेष—प्रगतिवाद का आरंभ सन् १९४० के पूर्व ही हो गया था । सामाजिक और आर्थिक उत्पीड़न संबंधो प्रगतिवादी विचारों ने साहित्यकारों को सहज रूप से अपनी ओर आकृष्ट किया, फलतः श्रमिकों, कृषकों और सामाजिक उत्पीड़ितों को केंद्र बनाकर साहित्य की रचना हुई । साहित्यिक विचारधारा के अतिरिक्त प्रगतिवाद जनादोलन के रूप में भी पनपा और सारे संसार को इसने प्रभावित किया । इस रूप में इसने मानवमुक्ति के लिये संघर्ष किया, अव्यावहारिक प्राचीन संस्कारों और रूढ़ियों के निराकरण तथा समाज की वर्गस्थिति को समाप्त करने की चेष्टा की ।