प्रचय
हिन्दी[सम्पादन]
प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]
शब्दसागर[सम्पादन]
प्रचय संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. वेदपाठ विधि में एक प्रकार का स्वर जिसके उच्चारण के विधानानुसार पाठक को अपना हाथ नाक के पास ले जाने की आवश्यकता पड़ती है ।
२. बीजगणित में एक प्रकार का संयोग ।
३. समूह । झुंड । उ॰—धर्मदास सुनियो चितलाई । लोक प्रचय अब देउँ बताई ।—कबीर सा॰, पृ॰ ९९४ ।
४. राशि । ढेर ।
५. वृद्धि । बढ़ती ।
६. लकड़ी आदि की सहायता से फूल या फल एकत्र करना ।