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प्रतीप

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

प्रतीप ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. प्रतिकूल घटना । आशा के विरुद्ध फल ।

२. वह अर्थालंकार जिसमें उपमेय को उपमान के समान न कहकर उलटा उपमान को उपमेय के समान कहते हैं अथवा उपमेय द्वारा उपमान का तिरस्कार वर्णन करते हैं । जैसे,— (क) पायँन से गुललाला जपादल पुंज बँधूक प्रभा बिथरैं हैं । मैथिली आनन से अरविंद कलाधर आरसी जानि परैं है । (ख) पाहन ! जिय जनि गरब धरु हौं ही कठिन अपार । चित दुर्जन के देखिए तोसे लाख हजार । (ग) करत गरबं तू कल्पतरु ! बड़ी सु तेरी भूल । या प्रभू की नीकी नजर तकु तेरे ही तूल । — (शब्द॰) ।

३. वह जो विरोधी हो । शत्रु । दुश्मन (को॰) ।

४. शांतनु के पिता और भीष्म के दादा का नाम (को॰) ।

प्रतीप ^२ वि॰

१. प्रतिकूल । उलटा । जैसे, प्रतीपगमन, प्रतीपतरण ।

२. विरोधी (को॰) ।

३. बाधक (को॰) ।

४. हठी । जिद्दी (को॰) ।