प्रत्यनीक

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

प्रत्यनीक संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. कविता का वह अर्थालंकार जिसमें किसी के पक्ष में रहनेवाले या संबंधी के प्रति किसी हित या अहित का किया जाना वर्णन किया जाय । जैसे, (क) तो मुख छबि सों हारि जग भयो कलंक समेत । सरद इंदु अरबिंद मुख अरबंदन दुख देत ।—मतिराम (शब्द॰) । (ख) अपने अँग के जानि कै यौवन नृपति प्रवीन । स्तन मन नैन नितंब को बड़ो इजाफा कीन ।—बिहारी (शब्द॰) । (ग) तैं जीत्यो निज रूप तें मदन बैर यह मान । बेदत तुव अनुकागिनी, इक सँग पाँचौ बान ।— (शब्द॰) ।

२. शत्रु । दुश्मन

३. प्रतिपक्षी । विरोधी । मुकाबला करनेवाला ।

४. प्रति- वादी ।

५. विघ्न । बाधा ।