प्रत्यभिज्ञा
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]प्रत्यभिज्ञा संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]
१. वह ज्ञान जो किसी देखी हुई चीज को, अथवा उसके समान किसी और चीज को, फिर से देखने पर हो । स्मृति की सहायता से उत्पन्न होनेवाला ज्ञान ।
२. वह अभेद ज्ञान जिसके अनुसार ईश्वर और जीवात्मा दोनों एक ही माने जाते हैं ।
३. कश्मीर का एक शैव दर्शन या शैवाद्वैतवाद । दे॰ 'प्रत्यभिज्ञादर्शन' ।