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प्रत्यय

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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प्रत्यय संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. विश्वास । एतबार । यकीन । उ॰— यदि पूरा प्रत्यय न हो तुम्हें इस जन पर, तो चढ़ सकते हैं राजदूत तो घन पर ।—साकेत, पृ॰ २३७ ।

२. प्रमाण । सबूत । उ॰—प्रभु की नाममुद्रिका देकर परिचय, प्रत्यय, धैर्य दिया ।—साकेत, पृ॰ ३८९ ।

३. विचार । खयाल । भावना ।

४. ज्ञान । बुद्धि । समझ ।

५. व्याख्या । शरह ।

६. कारण । हेतु ।

७. आवश्यकता । जरूरत ।

८. प्रख्याति । प्रसिद्धि ।

९. चिह्न । लक्षण ।

१०. निर्णय । फैसला ।

११. संमति । राय ।

१२. स्वाद । जायका ।

१३. सहायक । मददगार ।

१४. विष्णु का एक नाम ।

१५. वह रीति जिसके द्वारा छंदों के भेद और उनकी संख्या जानी जाय । विशेष— छंदःशास्त्र में ९ प्रत्यय हैं—(१) प्रस्तार, (२) सूची, (३) पाताल, (४) उद्दिष्ट, (५) नष्ट, (६) मेरु, (७) खंड- मेरु, (८) पताका और (९) मर्कटी ।

१६. व्याकरण में वह अक्षर या अक्षरसमूह जो किसी धातु या मूल शब्द के अंत में, उसके अर्थ में कोई विशेषता उत्पन्न करने के उददेश्य से लगाया जाय । जैसे, 'बड़ा' (शब्द) अथवा 'लड़ना' के 'लड़' (धातु) के अंत में जोड़ा जानेवाला 'आई' शब्दसमूह (जिसके जोड़ने से 'बड़ाई' )या 'लड़ाई' 'शब्द' बनता है) प्रत्यय है । विशेष— इसी प्रकार मूर्खता में 'ता' लड़कपन में 'पन', शीतल में 'ल', दयालु में 'लु', अक्षरशः में 'शः' बिकाऊ में 'आऊ', उठान में 'आन', घुमाव में 'आव' आदि प्रत्यय हैं । उपसर्ग क्रियापदों या शब्दों के आदि में और प्रत्यय अंत में लगता है अतः इसे परसर्ग भी कहते हैं ।

१७. छेद । छिद्र । रंध्र (को॰) ।