प्रमाद
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]प्रमाद संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. किसी कारण से कुछ को कुछ जानना और कुछ का कुछ करना । वह अनवधानता जो किसी कारण से हो । भूल । चूक । भ्रम । भ्रांति ।
२. अंतःकरण की दुर्बलता ।
३. योगशास्त्रानुसार समाधि के साधनों की भावना न करना । या उन्हें ठीक न समझना । यह नौ प्रकार के अंतरायों में चौथा है । इससे साधक को चित्तविक्षेप होता है ।
४. लापरवाही । भयंकर भूल (को॰) ।
५. मद । नशा । उन्माद (को॰) ।
६. विपत्ति । संकट (को॰) ।