प्रमाद

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

प्रमाद संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. किसी कारण से कुछ को कुछ जानना और कुछ का कुछ करना । वह अनवधानता जो किसी कारण से हो । भूल । चूक । भ्रम । भ्रांति ।

२. अंतःकरण की दुर्बलता ।

३. योगशास्त्रानुसार समाधि के साधनों की भावना न करना । या उन्हें ठीक न समझना । यह नौ प्रकार के अंतरायों में चौथा है । इससे साधक को चित्तविक्षेप होता है ।

४. लापरवाही । भयंकर भूल (को॰) ।

५. मद । नशा । उन्माद (को॰) ।

६. विपत्ति । संकट (को॰) ।