प्रवीर

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

प्रवीर ^१ वि॰ [सं॰] सुभट । श्रेष्ठ वीर । भारी योद्धा । बहादुर । उ॰—शेर पंचनंद का प्रवीर रणजीत सिंह आज मरता है देखो ।—लहर, पृ॰ ६१ ।

२. उत्तम । श्रेष्ठ ।

प्रवीर ^२ संज्ञा पुं॰

१. भौत्य मनु के एक पुत्र ।

२. वह जो सर्वश्रेष्ठ वीर हो (को॰) ।

३. महिष्मती के राजा नीलध्वज के पुत्र जो ज्वाला के गर्भ से उत्पन्न थे । विशेष—इनकी कथा जैमिनी भारत में इस प्रकार । जब युधिष्ठिर का अश्वमेध का घोडा़ महिष्मती में पहुंचा तब राजकुमार प्रवीर बहुत सी स्त्रियों को लिए एक उपवन में क्रीडा़ कर रहे थे । अपनी प्रेयसी मदनमंजरी के कहने से राजकुमार घोडे़ को पकड़ लाए । घोर युद्ध हुआ जिसमें नालध्वज हारने लगे । सूर्य नीलध्वज के जामाता थे और वर देने के कारण उन्हीं के घर रहते थे । सूर्य के समझाने पर नीलध्वज ने घोडे़ को अर्जुन को लौटाना चाहा । पर उनकी स्त्री उन्हें धिक्कारने लगी और उसने युद्ध करने के लिये उत्तेजित किया । युद्ध में प्रवीर तथा और बहुत से राजवंश के लोग मारे गए । तब नीलध्वज ने घोडे़ को वापस कर दिया । इसपर ज्वाला क्रुद्ध होकर अपने भाई के पास चली गई और उसे अर्जुन से युद्ध करने के लिये उभारने लगी । जब भाई ने भी उसे अपने यहाँ से भगा दिया तब वह नौका पर चढ कर गंगा पार कर रही थी । गंगा देवी को उसने बहुत फटकारा की तुमने सात पुत्रों को डुबो दिया और तुम्हारे आठवें पुत्र भीष्म की यह गति हुई की अर्जुन ने शिखंडी को सामने करके उसे मार डाला । इसपर गंगादेवी ने क्रुद्ध होकर शाप दिया की ६ महीने में अर्जुन का सिर कटकर गिर पडेगा । यह सुनकर ज्वाला प्रसन्न होकर आग में कूद पडी और अर्जुन की वध की इच्छा से तीक्ष्ण बाण होकर वभ्रुवाहन के तूणीर में जा विराजी । यह कथा महाभारत में नहीं है ।