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प्रसेनजित

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

प्रसेनजित संज्ञा पुं॰ [सं॰] भागवत् के अनुसार सत्यभामा के पिता सत्राजित् के एक भाई का नाम । विशेष—प्रसेनजित के पास एक मणि 'स्यमतक' नाम की थी (विशेष देखिए स्यमंतक शब्द) । जिसे पहनकर वह एक दिन शिकार खेलने गया । वहाँ एक सिंह उसे मार मणि लेकर चला । मार्ग में जांबवान् ने सिंह को मार मणि छीन ली । सत्राजित् ने प्रसेनजित् के न आने पर कृष्णचंद्र पर यह अपवाद लगाया कि उन्होंने प्रसेन को मणि के लोभ से मार डाला । कृष्णचंद्र इस अपवाद को मिटाने के लिये जंगल में गए । उन्होंने मार्ग में प्रसेन और उसके घोड़े को मरा पाया । आगे चलने पर सिंह भी मरा हुआ मिला । ढूँढ़ते हुए वे आगे बढ़े और एक गुफा में उन्हें जांबवान् मिला । उसने अपनी कन्या जांबवती को मणि के साथ कृष्णचंद्र को अर्पित किया । कृष्णचंद्र मणि और जांबवती को लेकर आए और उन्होंने सत्राजित को मणि देकर अपना कलंक मिटाया ।