प्रहसन
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]प्रहसन संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. हँसी । दिल्लगी । परिहास । चुहल । खिल्ली ।
३. उपहास या साधिक्षेप रचना (को॰) ।
४. एक प्रकार का काव्यमिअ नाट्य । विशेष—यह रूपक के दस भेदों में है । इस खेल में नायक कोई राजा, धनी, ब्राह्मण या धूर्त होता है और अनेक पात्र रहते हैं । खेल भर में हास्यरस प्रधान रहता है । पहले के प्रहसनों में एक ही अंक होता था पर अब लोग कई अंकों का प्रहसन लिखते हैं । जैसे, वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति और अंधेर नगरी आदि । इस प्रकार कै नाटक प्रायः कुरीतिसंशोधन के लिये बनाए और खेले जाते हैं ।