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प्रातिपदिक

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

प्रातिपदिक संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. अग्नि ।

२. संस्कृत व्याकरण के अनुसार वह अर्थवान् शब्द जो धातु न हो जौर न उसकी सिद्बि विभक्ति लगने से हुई हो । जैसे, पेड़, अच्छा आदि । विशेष—प्रातिपदिक के अंतर्गत ऐसे नाम, सर्वनाम, तद्बितांत कृदत और समासांत पद आते हैं जिनमें कारक की विभक्तियाँ न लगाई गई हों । व्याकरण मे उनकी 'प्रातिपादक' संज्ञा केवल विभक्तियों को लगाकर उनसे सिद्ब पद बनाने के लिये की गई है ।