प्रान
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]प्रान पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ प्राण] दे॰ 'प्राण' । उ॰—जय जय दशरथ कुल कमल भान । जय कुसुद जनन शशि प्रजा प्रान । —सूर (शब्द॰) । मुहा॰—प्रान तजना = मरना । उ॰—प्रिय बिछुरन को दुसह दुख हरखि जात प्योसार । दूरजोधन लौं देखियत तजत प्रान इहि बार । —बिहारी (शब्द॰) । प्रान नहीं में समाना = आशंकित होना । भयभीत होना । वैसे,—जब से इसे ज्वर है मेरे प्रान नहों में समाए हुए है ।— मान॰ भा॰,
५. पृ॰ ६ । प्रान रखना =जिलाना । जीवन देना । उ॰— अचल करों तन राखी प्राना । सुनि हँसि बोलेउ कृपानिधाना । — तुलसी (शब्द॰) । प्रान सा पाना =सजीव होना । उत्साहित होना । उ॰— नंद महर घर जब सुत जायौ । सुनतहि सबन प्रान सो पायौ । —नंद॰ ग्रं॰,पृ॰ २३३ । विशेष— अन्य मुहावरे तथा अर्थों के लियें दे॰ 'प्राण' शब्द ।