प्रायश्चित्त

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

प्रायश्चित्त संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. शास्त्रानुसार वह कृत्य जिसके करने से मनुष्य के पाप छूट जाते हैं । उ॰— मैं जिऊँ लोकापवाद निमित्त, तब न होगा तनिक प्रायश्चित ।—साकेत, पृ॰ १९० । विशेष—यह दो प्रकार का होता है एक व्रत दूसरा दान । शास्त्रों में भिन्न भिन्न प्रकार के कृत्यों का विधान है । किसी पाप में व्रत का, किसी में दान का, किसी मे व्रत और दान दोनों का विधान है । लोक में भी समाज के नियमविरुद्ध कोई काम करने पर मनुष्य को समाज द्वारा निर्धारित कुछ कर्म करने पड़ते हैं जिससे वह समाज में पुनः व्यवहार योग्य होता है । इस प्रकार के कृत्यों को भी प्रायश्चित कहते हैं ।

२. जौनियों के मतानुसार वे नौ प्रकार के कृत्य जिनके करने से पाप की निवृत्ति होती है ।— (१) आलोचन, (२) प्रतिक्रमण, (३) आलोचन प्रतिक्रमण, (४) विवेक, (५) व्युत्सगँ, (६) तप, (७) छेद, (८) परिहार, (९) उपस्थान और (१०) दोष । क्रि॰ प्र॰—लगना ।