प्लक्ष

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

प्लक्ष संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. पाकर नाम का वृक्ष । पिलखा ।

२. पुराणानुसार सात कल्पित द्बीपों में से एक द्बीप का नाम । विशेष—कहते हैं, यह जंबुद्बीप के चारों ओर है । और दो लाख योजन विस्तुत है । इसमें शांतभव, शिशिर, सुखोदय, आनंद, शिव, क्षेमक और ध्रुव नामक सात वर्ष और गोमेद, चंद्र, नारद, दुंदुभि, सोमक, सुमना और वैभ्राजक नाम के सात पर्वत माने जाते हैं । भागवत में इसके वर्षों का नाम शिव, वयस, सुभद्र, शांत, क्षेम, अमृत और तथा पर्वतों का नाम मणिकूट, वज्रकूट, इंद्रसोम, ज्योतिष्मानू, सुवर्ण, हिरण्यष्ठीन और मैघमाल लिखा है । विष्णुपुराण के अनुसार अनुतप्ता, शिखी, विपाशा, त्रिदिवा, क्रमू, अमृता और सुकृता नाम की सात नदियाँ हैं पर भागवत में उनका नाम अरुण, नृमला, आंगिरसी, सावित्री, सुप्रभात, ऋतंभरा और सत्यंभरा दिया है । कहते हैं, इस द्बीप में युगव्यवस्था नहीं है, इसमें सदा त्रेतायुग बना रहता है । यहाँ चातुर्वर्ण का नियम है । इस द्बीप में प्लक्ष का एक बहुत बड़ा वृक्ष है, इसी से इसे प्लक्षद्बीप कहते हैं ।

३. अश्वत्थ वृक्ष । पीपल ।

४. बड़ी खिड़की या दरवाजा ।

५. पाशर्वस्थ या पिछला दरवाजा (को॰) ।

६. द्बार के पास की भूमि (को॰) ।

७. एक तीर्थ का नाम ।