फँसना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

फँसना क्रि॰ सं॰ [सं॰ पाशा॰ हि॰ फाँस]

१. बंधन में पड़ना । पकड़ा जाना । फंदे में पड़ना । उ॰— हाय, संसार छोड़ा भी नहीं जाता । सब दुःख सहती हूँ पर इसी में फँसी पड़ी हूँ ।—हरिश्चंद्र (शब्द॰) ।

२. अटकना । उलझना । जैसे, काँटे में फँसना, दलदल में फँसना, काम में फँसना । उ॰—(क) यही कहे देता है कि तू किसी की प्रीति में फँसी है ।— हरिश्चंद्र (शब्द॰) । (ख) ऐसी दशा रघुनाथ लखे यहि आचरजै मति मेरी फँसे ।— रघुनाथ (शब्द॰) । मुहा॰— किसी से फँसना = किसी से प्रेम होना । किसी से अनुचित संबंध होना । बुरा फँसना = आपत्ति में पड़ना । विपत्ति में पड़ना । उ॰— हा ! मेरी सखी वुरी फँसी ।— हरिश्चद्र (शब्द॰) ।