फग

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

फग पु संज्ञा पुं॰ [हिं॰ फंग] दे॰ 'फंग' । उ॰— आँधरो अघम जड़ जाजरो जराजवन सूकर के सावक ढका ढकेलो मग में । गिरे हिए हहरि हराम हो हराम हन्यो हाय हाय करत परीगो काल फग में । तुलसी बिसोक ह्वै त्रिलोकपति लोक गयो नाम को प्रताप बात बिदित है जग में । सोई राम नाम जो सनेह सो जपत जन ताकी महिमा क्यों कही है जात अग मे ।—तुलसी ग्रं॰ पृ॰ २१५ ।