फगुआ
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]फगुआ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ फागुन]
१. होली । होलिकोत्सव का दिन ।
२. फाल्गुन के महिने में लोगों का वह आमोद प्रमोद जो वसंत ऋतु के आगमन के उपलक्ष में माना जाता है । इसमें लोग परस्पर एक दूसरे पर रंग कीच आदि डालते हैं और अनेक प्रकार के विशेषतः अश्लील गीत गाते हैं । फाग । उ॰—दीहें मारि असुर हरि ने तब दीन्हों देवन राज । एकन को फगुआ इंद्रासन इक पताल को साज ।—सूर (शब्द॰) । मुहा॰—फगुआ खेलना = होली के उत्सव में रंग गुलाल आदि एक दूसरे पर डालना । उ॰—बन घन फूले टेसुआ बगियन बेलि । चले बिदेस पियरवा फगुआ खएलि ।—रहीम (शब्द॰) । फगुआ मानना = फागुन में स्त्री पुरुषों का परस्पर मिलकर रंग खेलना और गुलाल मलना आदि । उ॰—खेलत बसंत राजाधिराज । देखत नभ कौतुक सुर समाज । नुपुर किंकिन पुनि अति सुहाइ । ललनागन जब गाहि धरहिं घाइ । लोचन आजहिं फगुआ मनाइ । छाड़हिं नचाइ हा हा कराइ ।— तुलसी (शब्द॰) ।
३. फाल्गुन के महीने में गाए जानेवाले गीत, विशेषतः अश्लील गीत ।
४. वह वस्तु जो किसी को फाग के उपलक्ष्य में दी जाय । फगुआ खेलने के उपलक्ष में दिया जानेवाला उपहार । उ॰—(क) ज्यों ज्यों पट झटकति हटति हँसति नचावति नैन । त्यों त्यों निपट उदार ह्वै फगुआ देत बनैन ।—बिहारी (शब्द॰) । (ख) कहैं कबीर ये हरि के दास । फगुआ माँगै बैकुँठवास ।—कबीर (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—देना ।—माँगना ।