फङ्का
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]फंका संज्ञा पुं॰ [हि॰ फाँकना, फाँक] [स्त्री॰ फकी]
१. सूखे दाने या बुकनी की उतनी मात्रा । जितनी एक बार मुँह में फाँकी जा सके । मुहा॰— फंका करना = नाशा करना । नष्ट करना । फंका मारना = मुंह में फंका ड़ालना ।
२. कतरा । टुकड़ा । खंड । उ॰— केते घर घर के आयुध करके केते सरके संक भरे । तेहि सूरज वंका दै रन हंका करि अरि फाँकी दूरि करे ।—सूदन (शब्द॰) ।