फङ्ग
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]फंग पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ बन्ध या पञ्ज]
१. बंधन । फंदा । उ॰—(क) जाहु चली मैं जानी तोकों । आजुहि पढ़ि लीनी चतुराई कहा दुरावति मोकों । एही ब्रज तुम हम नँदनंदन दूरि कतहुँ नहि जँहो । मेरे फंग कबहुँ तो परिहो मुजरा तबहीं दैहो ।—सूर (शब्द॰) । (ख) शोभा सिंधु संभव से नीके नीके नग है मातु पितु भाग बस गए परि फंग है ।—तुलसी (शब्द॰) ।
२. राग । अनुराग । उ॰—सुनत सखी तँह दोरी गई । सुने श्याम सुखमा के आए धाई तरुणि नई । कोउ निरखति मुख कोउ निरखति अंग कोउ निराखति रँग और । रेनि फंग कहुँ पगे कन्हाई कहति सबै करि रोर ।— सूर (शब्द॰) ।