फङ्ग

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

फंग पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ बन्ध या पञ्ज]

१. बंधन । फंदा । उ॰—(क) जाहु चली मैं जानी तोकों । आजुहि पढ़ि लीनी चतुराई कहा दुरावति मोकों । एही ब्रज तुम हम नँदनंदन दूरि कतहुँ नहि जँहो । मेरे फंग कबहुँ तो परिहो मुजरा तबहीं दैहो ।—सूर (शब्द॰) । (ख) शोभा सिंधु संभव से नीके नीके नग है मातु पितु भाग बस गए परि फंग है ।—तुलसी (शब्द॰) ।

२. राग । अनुराग । उ॰—सुनत सखी तँह दोरी गई । सुने श्याम सुखमा के आए धाई तरुणि नई । कोउ निरखति मुख कोउ निरखति अंग कोउ निराखति रँग और । रेनि फंग कहुँ पगे कन्हाई कहति सबै करि रोर ।— सूर (शब्द॰) ।