फटना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]फटना क्रि॰ अ॰ [हिं॰ फाड़ना का अक॰ रूप]
१. आघात लगने का कारण अथवा यों ही किसी पोली चीज का इस प्रकार टूटना या खंडित होना अथवा उसमें दरार पड़ जाना जिसमें भीतर की चीजें बाहर निकल पड़ें अथवा दिखाई देने लगें । जैसे, दीवार फटना, जमीन फटना, सिर फटना, जूता फटना । उ॰—लागत सीस बीच ते फटें । टूठहि जाँघ भुजा धर कटें ।—लल्लू (शब्द॰) । मुहा॰—छाती फटना = असह्य दुःख होना । मानसिक वेदना होना । बहुत अधिक दुःख पहुँचना । उ॰—(क) तुम बिन छिन छिन कैसे कटे । पलक ओट में छाती फटे ।—लल्लू (शब्द॰) । (ख) न जाने क्यों इसके रोने पर मेरा कलेंजा फटा जा रहा है ।—भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ १, पृ॰ ३१० । (किसी से) मन या चित्त फटना = विरक्ति होना । संबंध रखने को जी न चाहना । तबीयत हट जाना । जैसे,—अब की बार के उसके व्यवहार से हमारा मन फट गया ।
२. झटका लगने के कारण वा और किसी प्रकार किसी वस्तु का कोई भाग अलग हो जाना । जैसे कपड़ा फटना, किताब फटना ।
३. किसी पदार्थ का बीच से कटकर छिन्न भिन्न हो जाना । जैसे, कोई फटना, बादल फटना ।
४. अलग हो जाना । पृथक् हो जाना ।
५. किसी गाढ़ें द्रव पदार्थ में कोई ऐसा विकार उत्पन्न होना जिससे उसका पानी और सार भाग दोनों अलग अलग हो जायँ । जैसे, दूध फटना, खून फटना ।