फड़कना
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]फड़कना क्रि॰ अ॰ [अनु॰]
१. फड़ फड़ करना । फड़फड़ाना । उछलना । बार बार नीचे ऊपर या इधर उधर हिलना । उ॰—जिन तन पै जवानी की पड़ी फड़कै थी बोटी । उस तन को न कपड़ा है न उस पेट को रोटी ।—नजीर (शब्द॰) । मुहा॰—फड़क उठना=उमंग में होना । आनंदित होना । प्रसन्न होना । फड़क जाना=मुग्ध होना ।
२. किसी अंग वा शरीर के किसी स्थान में अचानक स्फुरण होना । किसी अंग में गति उत्पन्न होना । उ॰—इतनी बा त सुनते ही रूक्मिणी जी की छाती से दूध धार बह निकली और बाई बाँह फड़कने लगी ।—लल्लू (शब्द॰) । विशेष—लोगों को विश्वास है कि भिन्न भिन्न अंगों के फड़कने का शुभ या अशुभ परिणाम होता है ।
३. हिलना डोलना । गति होना । मुहा॰—बोटी फड़कना = अत्यंत चंचलता होना ।
४. तड़फड़ाना । घबड़ाना । स्थिर न रहना । चंचल होना । क्रिया के लिये उद्यत होना ।
५. पक्षियों का पर हिलना ।