फन

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

फन ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ फण]

१. साँप का सिर उस समय जब वह अपनी गर्दन के दोनों ओर की नलियों में वायु भरकर उसे फैलाकर छत्र के आकार का बना लेता है । फण । उ॰—शेषनाग के सहस फन जामें जिह्वा दोय । नर के एकै जीभ है ताही में रह सोय ।—कबीर (शब्द॰) ।

२. बाल ।

३. भटवांस ।

४. नाँव के डाँड़ का वह अगला और चौड़ा भाग जिससे पानी काटा जाता है । पत्ता । (लश॰) ।

५. अगला सिरा । अग्रभाग । उ॰—थल वेत छुट्टी फनं बेत उट्टी । पृ॰ रा॰, १२ । ८३ ।

फन ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ फणी] दे॰ 'फणी' ।

फन ^३ संज्ञा पुं॰ [अ॰ फन]

१. गुण । खूबी ।

२. विद्या ।

३. दस्तकारी ।

४. बाजीगरी । इंद्रजाल (को॰) ।

५. छलने का ढंग । मकर । उ॰—नागिन के तो एक फन नारी के फन बीस । जाको डस्यो न फिरि जिऐ मरिहै बिस्बा बीस ।— कबीर (शब्द॰) ।