फरका
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]फरका ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ फलक]
१. छप्पर जो अलग छाकर बडेर पर चढ़ाया जाता है । उ॰—ताको पूत कहावत हौ जो चोरी करत उघारत फरको । सूर श्याम कितनो तुम खैहो दधि माखन मेरे जहँ तहँ ढरको ।
२. बँडेर के एक ओर की छाजन । पल्ला ।
३. आवरण । रोक । आच्छादन । उ॰—सुंदर जो बिभचारिणी, फरका दीयौ डारि । लाज सरम वाके नहीं, डोलै घर घर बारि ।—सुंदर ग्रं॰, भा॰ २, पृ॰ ६९२ ।
४. टट्टर जो द्वार पर लगाया जाता है ।
फरका ^२ संज्ञा पुं॰ [अ॰ फिरका] दे॰ 'फिर्का' ।