फरना
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]फरना पु ‡ क्रि॰ अ॰ [सं॰ फलन]
१. फलना । उ॰—(क) गुलगुल तुंरँग सदा फर फरे । नारँग अति राते रस भरे ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) धनुषयज्ञ कमनीय अवनितल कौतुक ही भए आय खरे री । छबि सुर सभा मनहुँ मनसिज के कलित कलपतरु रूख फरै री ।—तुलसी (शब्द॰) ।
२. फलित करना । अर्थयुक्त करना । उ॰—आरति इस्क इमाने धरई । अल्लह अगुने बानी फरई ।—गुलाल॰ बानी पृ॰, १२६ ।
३. फोड़े फुंसियाँ या छोटे छोटे दोनों का अधिकता से होना । जैसे,—दाढ़ी फरना, देह फरना । मुहा॰—फरना फूलना = दे॰ 'फलना' । उ॰—गोंद कली सग बिगसी ऋतु बसंत और फाग । फूलहु फरहु सदा सुख सफल सुहाग ।—जायसी (शब्द॰) ।