फालसा

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

फालसा ^१ संज्ञा पुं॰ [फा़॰ फालसह्, तुल॰ सं॰ परूरक, परूष, प्रा॰ फरूस] एक छोटा पेड़ । विशेष—इसका धड़ ऊपर नहीं जाता और इसमें छड़ी के आकार की सीधी सीधी डालियाँ चारों ओर निकलती हैं । डालियों के दोनों ओर सात आठ अगुल लबे चौड़े गोल पत्ते लगते हैं जिनपर महीन लोइयाँ सी होती हैं । पत्ते की ऊपरी सतह की अपेक्षा पीछे की सतह का रंग हलका होता है । डालियों में यहाँ से वहाँ तक पीले फूल गुच्छों में लगते हैं जिनके झड़ जाने पर मोती के दाने के बराबर छोटे छोटे फल लगते हैं । पकने पर फलों का रंग ललाई लिए ऊदा और स्वाद खट- मीठा होता है । बीज एक या दो होते हैं । फालसा बहुत ठंढा समझा जाता है, इससे गरमी के दिनों में लोग इसका शरबत बनाकर पीते हैं । वैद्यक में कच्चे फल को वातघ्न और पित्तकारक तथा पक्के फल को रुचिकारक, पित्तघ्न और शोथनाशक लिखा है । पर्या॰—परूपक । गिरिपिलु । शेपण । पारावत ।

फालसा ^२ संज्ञा पुं॰ [?] शिकारियों की बोली में वह जंगली जानवर जो जंगल से निकलकर मैदान में चरने आए ।