फिरंग

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

फिरंग संज्ञा पुं॰ [अ॰ फ्रांक]

१. यूरोप का देश । गोरों का मुल्क । फिरंगिस्तान । विशेष—फ्रांक नाम का जरमन जातियों का एक जत्था था जो ईसा की तीसरी शताब्दी में तीन दलों में विभक्त हुआ । इनमें से एख दल दक्षिण की ओर बढ़ा और गाल (फ्रांस का पुराना नाम) से रोमन राज्य उठाकर उसने वहाँ अपना अधिकार जमाया । तभी से फ्रांस नाम पड़ा । सनू १०९६ और १२५० ई॰ के बीच यूरोप के ईसाइयों ने ईसा की जन्मभूमि को तुर्कों के हाथ से निकालने के लिये कई चढ़ाइयाँ कीं । फ्रांक शब्द का परिचय तभी से तुर्कों को हुआ और वे यूरोप से आनेवालों को फिरंगी कहने लगे । धीरे धीरे यह शब्द अरब, फारस आदि होता हुआ हिंदुस्तान में आया । हिंदुस्तान में पहले पुर्तगाली दिखाई पड़े इससे इस शब्द का प्रयोग बहुत दिनों तक उन्हीं के लिये होता रहा । फिर यूरोपियन मात्र को फिरंगी कहने लगे ।

२. भावप्रकाश के अनुसार एक रोग । गरमी । आतशक । विशेष—पहले पहल भावप्रकाश में ही इस रोग का उल्लेख दिखाई पड़ता है और किसी प्राचीन वैद्यक ग्रंथ में नहीं है । भावप्रकाश में लिखा है कि फिरंग नाम के देश में यह रोग बहुत होता है इससे इसका नाम 'फिरंग' है । यह भी स्पष्ट कहा गया है कि फिरंग रोग फिरंगी स्त्री के साथ संभोग करने से हो जाता है । इस रोग के तीन भेद किए हैं—बाह्य फिरंग, आभ्यंतर फिरंग और बहिरंतर्भव फिरंग । बाह्य फिरंग, विस्फोटक के समान शरीर में फूट फूटकर निकलता है और घाव या व्रण हो जाते हैं । यह सुखसाध्य है । आभ्यंतर फिंरग में संधि स्थानों में आमवात के समान शोथ और वेदना होती है । यह कष्टसाध्य है । बहरितर्भव फिरंग एक प्रकार से असाध्य है ।