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फिरना

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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फिरना क्रि॰ अ॰ [हिं॰ फेरना का अक॰ रूप]

१. इधर उधर चलना । कभी इस ओर कभी उस ओर गमन करना । इधर उधर डोलना । ऐसा चलना जिसकी कोई एक निश्चित दिशा न रहे । भ्रमण करना । जैसे,—(क) वह धूप में दिन भर फिरा करता है । (ख) वह चंदा इकट्ठा करने के लिये फिर रहा है । उ॰—(ख) खेह उड़ानी जाहि घर हेरल फिरात सो खेह । जायसी (शब्द॰) । (ख) फिरिहहिं मृग जिमि जीव दुखारी ।—तुलसी (शब्द॰) । (ग) फिरत सनेह मगन सुख अपने ।—तुलसी (शब्द॰) ।

२. टहलना । विचरना । सैर करना । जैसे,—संध्या को इधर उधर फिर आया करो । यौ॰—घूमना फिरना ।

३. चक्कर लगाना । बार बार फेरे खाना । लट्टू की तरह एक ही स्थान पर घूमना अथवा मंडल बाँधकर परिधि के किनारे घूमना । नाचना या परिक्रमण करना । जैसे, लट्टू का फिरना, घर के चारों ओर फिरना । उ॰—(ख) फिरत नीर जोजन लख वाका । जैसे फिरै कुम्हार के चाका ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) फिरैं पाँच कोतवाल सो फेरी । काँपे पाँव चपत वह पौरी ।—जायसी (शब्द॰) ।

४. ऐंठा जाना । मरोड़ा जाना । जैसे,—ताली किसी ओर को फिरती ही नहीं है ।

५. लौटना । पलटना । वापस होना । जहाँ से चले थे उसी ओर को चलना । प्रत्यावर्तित होना । जैसे,—(क) वे घर पर मिले, नहीं मैं तुरंत फिरा । (ख) आगे मत जाओं, घर फिर जाओ । उ॰—(क) आय जनमपत्री जो लिखी । देय असीस फिरे ज्योतिषी ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) पुनि पुनि विनय करहिं कर जोरी । जो यहि मारग फिरिय बहोरी ।—तुलसी (शब्द॰) । (ग) अपने धाम फिरे तब दोऊ जानि भई कछु साँझ । करि दंडवत परसि पद ऋषि के बैठे उपवन माँझ ।—सूर (शब्द॰) । संयो॰ क्रि॰—आना ।—जाना ।—पड़ना ।

६. किसी मोल ली हुई वस्तु का अस्वीकृत होकर बेचनेवाले को फिर दे दिया जाना । वापस होना । जैसे,—जब सौदा हो गया तब चीज नहीं फिर सकती । संयो॰ क्रि॰—जाना ।

७. एक ही स्थान पर रहकर स्थिति बदलना । सामना दूसरी तरफ हो जाना । जैसे,—धक्का लगने से मूर्ति का मुँह उधर फिर गया । संयो॰ क्रि॰—जाना ।

८. किसी ओर जाते हुए दूसरी ओर चल पड़ना । मुड़ना । घूमना । चलने में रुख बदलना । जैसे,—कुछ दूर सीधी गली में जाकर मंदिर की ओर फिर जाना । संयो॰ क्रि॰—जाना । मुहा॰—किसी ओर फिरना = प्रवृत्त होना । झुकना । मायल होना । जैसे,—उसका क्या, जिधर फेरो उधर फिर जाता है । उ॰—तसि मति फिरी अहइ जसि भावी ।—तुलसी (शब्द॰) जो फिरना= चित्त न प्रवृत्त रहना । उचट जाना । हट जाना । विरक्त हो जाना ।

९. विरुद्ध हो पड़ना । खीलाफ हो जाना । विरोध पर उद्यत होना । लड़ने या मुकाबला करने के लिये तैयार हो जाना । जैसे,—बात ही बात में वह फिर गया । मुहा॰—(किसी पर) फिर पड़ना = विरुद्ध होना । क्रुद्ध होना । बिगड़ना ।

१०. और का और होना । परिवर्तित होना । बदल जाना । उलटा होना । विपरीत होना । जैसे, मति फिरना । उ॰— काल पाइ फिरति दसा, दयालु । सब ही कौ, तोहि बिनु मोहिं कबहूँ न कोउ चहँगो ।—तुलसी (शब्द॰) । संयो॰ क्रि॰—जाना । मुहा॰—सिर फिरना = बुद्धि भ्रष्ट होना । उध्माद होना ।

११. बात पर द्दढ़ न रहना । प्रतिज्ञा आदि से विचलित होना । हटना । जैसे, वचन से फिरना, कौल से फिरना । संयो॰ क्रि॰—जाना ।

१२. सीधी वस्तु का किसी ओर मुड़ना । झुकना । टेढ़ा होना जैसे,—इस फावड़े की धार गई है । संयो॰ क्रि॰—जाना ।

१३. चारो ओर प्रचारित होना । घोषित होना । जारी होना । सबके पास पहुँचाया जाना । जैसे, गश्ती चिट्ठी फिरना, दुहाई फिरना । उ॰—(क) नगर फिरी रघुबीर दुहाई ।— तुलसी (शब्द॰) । (ख) भइ ज्योनार फिरी खँड़वानी ।— जायसी (शब्द॰) ।

१४. किसी वस्तु के ऊपर पोता जाना । लीप या पोतकर फैलाया जाना । चढ़ाया जाना । जैसे, दीवार पर रंग फिरना, जूते पर स्याही फिरना ।

१५. यहाँ से वहाँ तक स्पर्श करते हुए जाना । रखा जाना ।

फिरना संज्ञा पुं॰ [हिं॰ फिरना]

१. सोने का एक आभूषण जो गले में पहना जाता है ।

२. सोने की अँगूठी जो तार को कई फेरे लपेटकर बनाई गई हो ।