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फुरना

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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फुरना क्रि॰ अ॰ [सं॰ स्फुरण, प्रा॰ फुरण]

१. स्फुटित होना । निकलना । उद्भूत होना । प्रकट होना उदय होना । उ॰— (क) लोग जानै बौरी भयो गयो यह काशी पुरी फुरी मति अति आयो जहाँ हरि गाइए ।—प्रिया॰ (शब्द॰) । (ख) नील नलिन श्याम, शोभा अगनित काम, पावन ह्वदय जेहि उर फुरति ।—तुलसी (शब्द॰) ।

२. प्रकाशित होना । चमक उठना । झलक पड़ना । उ॰—आधी रात बीती सब सोए जिय जान आन राक्षसी प्रभंजनी प्रभाव सो जनायो है । बीजरी सी फुरी भाँति बुरी हाथ छुरी लोह चुरी ड़ीठि जुरी देखि अंगद लजायो है ।—हनुमान (शब्द॰) ।

३. फड़कना । फड़फडाना । हिलाना । उ॰—(क) उग्यो न धनु जनु वीर विगत महि किधों कहु सुभट दूरे । रोषे लखन विकट भृकुठी करि भुज अरु अधर फुरे ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) अजहूँ अपराध न जानकी की भुज बाम फुरे मिलि लोचन सों । हनुमान (शब्द॰) ।

४. स्फुटित होना । उच्चरित होना । मुँह से शब्द निकलना । उ॰—(क) सूर सोच सुख करि भरि लोचन अंतर प्रीति न थोरी । सिथिल गात मुख बचन फुराति नहिं ह जो गई मति भोरी ।—सूर (शब्द॰) । (ख) उठि के मिले तंदुल हरि लीन्हें मोहन बचन फुरे । सूरदास स्वामी की महिमा टारी नाहिं टरे ।—सूर (शब्द॰) ।

५. पूरा उतरना । सत्य ठहरना । ठीक निकलना । जैसे सोचा समझा या कहा गया था वैसा ही होना । उ॰—फुरी तुम्हारी बात कही जो मों सों रही कन्हाई ।—सूर (शब्द॰) ।

६. प्रभाव उत्पन्न करना । असर करना । लगना । उ॰—(क) फुरे न यंत्र मंत्र नहिं लागे चले गुणी गुण हारे । प्रेम प्रीति की व्यथा तप्त तनु सो मोहिं डारति मारे ।—सूर (शब्द॰) । (ख) यंत्र न फुरत मंत्र नहिं लागत प्रीति सिरा जाति ।—सूर (शब्द॰)

७. सफल होना । सोचा हुआ परिणाम उत्पन्न करना । उ॰—फुरै न कछु उद्योग जहँ उपजै अति मन सोच ।—पद्माकर (शब्द॰) ।