फूलों
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]फूलों की माला, हार आदि सिंगार या सजावट का सामान । (२) ऐसी नाजुक और कमजोर चीज जो थोड़ी देर की शीभा के लिये हो । फूलों की छड़ी =वह छड़ी जिसमें फूलों की माला लपेड़ी रहती है और जिससे चोथी खेलते है । फूलों की सेब = वह पलंग या शय्या जिसपर सजावठ और कोमलता के लिये फूलों की पँखड़ियाँ बिछी हों । आनंद की सेज । (श्रुंगार की एक सामग्री) । पान फूल सा =अत्यंत सुकुमार सा ।
२. फुल के आकार के बेल बूटे या नक्काशी । उ॰— मनि फूल रचित मखतूल की झूलन जाके तूल न कोउ । —गोपाल (शब्द॰) ।
३. फूल के आकार का गहना जिसे स्त्रियाँ कई अंगों में पहनती है । जैसे, करनफूल, नकफूल, सीसफूल । उ॰— (क) कानन कनक फूल छबि देहीं ।— तुलसी (शब्द॰) । (ख) पुनि नासिक भल फूल अमोला । —जायसी (शब्द॰) । (ग) पायल औ पगपान सुनूपूर । चुटकी फूल अनौठ सुभूपुर ।— सूदन (शब्द॰) ।
४. चिराग की जलती बत्ती पर पड़े हुए गोल दमकते दाने जो उभरे हुए मालूम होते हैं । गुल । मुहा॰— फूल पड़ना = बत्ति में गोल दाने दिखाई पड़ना । फूल करना = बुझना ( चिराग का) ।
५. आग की चिनगारी । स्फुलिंग । क्रि॰ प्र॰— पड़ना ।
६. पीतल आदि की गोल गाँठ या घुंड़ी जिसे शोभा के लिये छड़ी, किवा़ड़ के जोड़ आदि पर जड़ते हैं । फुलिया ।
७. सफेद या लाल धब्वा जो कुष्ठ रोग के कारण शरीर पर जगह जगह पड़ जाता है । सफेद दाग । श्वेत कुष्ठ । क्रि॰ प्र॰— पड़ना ।
८. सत्त । सार । जैसे, अजवायन का फूल । क्रि॰ प्र॰— निकालना ।—उतारना ।
९. वह मद्य जो पहली बार का उतरा हो । कड़ी देशी शराब । उ॰— थोड़ो ही सी चाखिया भाँड़ा पीया धोय । फूल पियाला । जिन पिया रहे कलालाँ सोय । —कबीर (शब्द॰) । विशेष—यह शराब बहुत साफ होती है और जलाने से जल उठती है । इसी की फिर खींचकर दोआतशा बनाते है ।
१०. आटे चीनी आदि का उत्तम भेद ।
११. स्त्रियों का वह रक्त जो मासिक धर्म में निकलता है । रज । पूष्प । क्रि॰ प्र॰— आना ।
१२. गर्भाशय ।
१३. धुटने या पैर की गोल हड्डी । चक्की । टिकिया ।
१४. वह हड्डी जो शव जलाने के पोछे बच रहती । है और जिसे हिदु किसी तीर्थस्थान या गंगा में छोड़ने के लिये ले जाते हैं । क्रि॰ प्र॰— चुनना ।
१५. सूखे हुए साग या भाँग की पत्तियाँ (बोलचाल) । जैसे,— मेथी के दो फुल दे देना ।
१३. किसी पतली या द्रव पदार्थ को सुखाकर जमाया हुआ पत्तर वा वरक । जैसे, स्याही के फूल ।
१७. मथानी के आगे का हिस्सा जो फूल जो फुल के आकार का होता है ।
१८. एक मिश्र या मिलाजुली धातु जो तांबे और राँगे के मेल से बनती है । विशेष— यह धातु उजली औ स्वच्छ चाँदी के रंग की हीती है और इसमें रखने से दही या और खट्टी चाजें नहीं बिगड़ती । अच्छा फूल 'बेधा' कहलाता है । साधारण फूल में चार भाग ताँबा ओर एक भाग राँगा होता है पर बेधा फूल में १०० भाग ताँबा और २७ भाग राँग होता है और कुछ चाँदी भी पड़ती है । यह धातु बहुत खरी होती है और आघात लगने पर चट टुट जाती है । इसके लोटे, कटोरे, गिलास, आबखोरे आदि बनते हैं । फूल काँसे से बहुत मिलता जुलता है पर काँसे से इसमें यह भेद है काँसे में ताँबे के साथ जस्ते का मेल रहता है और उसमें खट्टी चीजें बिगड़ जाती है ।