फेरना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

फेरना क्रि॰ स॰ [सं॰प्रेरणा प्रा॰ पेरन; अथवा हिं॰ 'फिर' से व्युत्पन्न नामिक धातु] १०एक ओर से दूसरी ओर ले जाना । भिन्न दिशा में प्रवृत्त करना । गति बदलना । घुमाना । मोड़ना । जैसे,—गाडी़ पश्चिम जा रही थी उसने उसे दक्खिन की ओर फेर दिया । उ॰—(क) । मैं ममता मन मारि ले घठ ही माहीं घेर । जब ही चालै पीठ दै आँकुस दै दै फेर ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) । तिनहिं मिले मन भयो कुपथ रत फिरै तिहारे फेरे ।—तुलसी (शब्द॰) । (ग) । सुर तरु रुख सुरबेलि पवन जनु फेरइ ।—तुलसी (शब्द॰) । संयो क्रि॰—देना ।—लेना ।

२. पीछे चलाना । जिधर से आता हो उसी ओर भेजना या चलाना । लौटाना । वापस करना । पलटाना । जैसे,— वह तुम्हारे यहाँ जा रहा था, मैंने रास्ते ही से फेर दिया । उ॰—जे जे आए हुते यज्ञ में परिहै तिनको फेरन ।—सूर (शब्द॰) । संयो॰ क्रि॰—देना ।

३. जिसके पास से (कोई पदार्थ) । आया हो उसी के पास पुनः भेजना । जिसने दिया हो उसी को फिर देना । लौटाना । वापस करना । जैसे,—(क) । जो कुछ मैंने तुम से लिया है सब फेर दूँगा । (ख) । यह कपडा अच्छा नहीं है, दूकान पर फेर आओ । (ग) । उनके यहाँ से जो न्योता आवेगा वह फेर दिया जायगा । उ॰—दियो सो सीस चढा़य ले आछी भाँति अएरि । जापै चाहत सुख लयो ताके दुखहिं न फेरि ।— बिहारी (शब्द॰) । संयो॰ क्रि॰—देना ।

४. जिसे दिया था उससे फिर ले लेना । एक बार देकर फिर अपने पास रख लेना । वापस लेना । लौटा लेना । जैसे,— (क) । अब दूकानदार कपडा़ नहीं फेरेगा । (ख) । एक बार चीज देकर फेरते हो । संयो क्रि॰—लेना ।

५. चारों ओर चलना । मंडलाकार गति देना । चक्कर देना । घुमाना । भ्रमण करना । जैसे, मुगदर फेरना, पटा फेरना, बनेठी फेरना । मुहा॰—माला फेरना =(१) । एक एक गुरिया या दाना हाथ से खिसकाते हुए माला को चारों ओर घुमाना । माला जपना । (एक एक दाने पर हाथ रखते हुए ईश्वर या किसी देवता का नाम या मंत्र कहते जाते है जिससे नाम या मंत्र की संख्या निर्दिष्ट होती जाती है) । उ॰—कबिरा माला काठ की बहुत जतन का फेरु । माला फेरो साँस की जामें गाँठ न मेरू ।—कबीर (शब्द॰) । (२) । बार बार नाम लेना । रट लगाना । धुन लगाना । जैसे,—दिन रात इसी की माला फेरा करो ।

६. ऐंठना । मरोड़ना । जैसे,—पेंच को उधर फेरो ।

७. यहाँ से वहाँ तक स्पर्श कराना । किसी वस्तु पर धीरे से रखकर इधर उधऱ ले जाना । छुलाना या रखना । जैसे,—घोडे़ की पीठ पर हाथ फेरना । उ॰—अवनि कुरंग, विहग्र द्रुम डारन रूप निहारत पलक न प्रेरत । मगन न डरत निरखि कर कमलन सुभग सरासन फेरत ।—तुलसी (शब्द॰) । संयो॰ क्रि॰—देना ।—लेना । मुहा॰—हाथ फेरना =(१) । स्पर्श करना । इधर उधऱ छूना । (२) । प्यार से हाथ रखना । सहलाना । जैसे, पीठ पर हाथ फेरना । (३) । हथियाना । ले लेना । हजम करना । उडा़ लेना । जैसे, पराए माल पर हाथ फेरना ।

८. पोतना । तह चढ़ना । लेप करना । जैसे, कलई फेरना, रंग फेरना, चूना फेरना । मुहा॰—पानी फेरना = धो देना । रंग बिगाड़ना । नष्ट करना ।

९. एक ही स्थान पर स्थिति बदलना । सामना दूसरी तरफ करना । पार्श्व परिवर्तित करना । जैसे,—(क) उसे उस करवट फेर दो । (ख) वह मुझे देखते ही मुँह फेर लेता है । संयो॰ क्रि॰—देना ।—लेना ।

१. स्थान वा क्रम बदलना । उलट पलट या इधर उधर करना । नीचे के ऊपर या इधर का उधर करना । जैसे, पान फेरना ।

११. पलटना । और का और करना । बद- लना । भिग्न करना । विपरीत करना । विरुद्ध करना । जैसे, मति फेरना, चित्त फेरना । उ॰—(क) फेरे भेख रहै भा तपा । धूरि लपेटे मानिक छपा । —जायसी (शब्द॰) । (ख) सारद प्रेरि तासु मति फेरी । माँगेसि नींद मास षठ केरी ।—तुलसी (शब्द॰) ।

१२. माँजना । बार बार दोहराना । अभ्यस्त करना । उदधरणी करना । जैसे, पाठ फेरना ।

१३. चारों ओर सब के सामने ले जाना । सब के सामने ले जाकर रखना । घुमाना । जैसे, जनवासे में पान फेरना । उ॰—फेरे पान फिरा सब कोई । लागा व्याहचार सब होई ।—जायसी (शब्द॰) ।

१४. प्रचारित करना । घोषित करना । जैसे, डौंडी़ फेरना ।

१५. चलाकर चाल ठीक करना । घोडे़ को आदि को ठीक चलने की शिक्षा दिना । चाल चलाना । निकालना । जैसे,—वह सवार बहुत अच्छा घोडा़ फेरता है । उ॰—फेरहिं चतुर तुरँग गति नाना ।—तुलसी (शब्द॰) ।