फेरा

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

फेरा संज्ञा पुं॰ [हिं॰ फेरना]

१. किसी स्थान या वस्तु के चारों ओर गमन । परिक्रमण । चक्कर । जैसे,—वह ताल के चारो ओर फेरा लगा रहा है । उ॰—चारि खान में भरमता कबहुँ न लगता पार । सो फेरा सब मिट गया सतगुरु के उपकार ।—कबीर (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—करना ।—लगाना ।

२. लपेटने में एक बार का घुमाव । लपेट । मोड़ । बल । जैसे,—कई फेरे देकर तग्गा लपेटा गया है । क्रि॰ प्र॰—करना ।—डालना ।—लगाना ।

४. इधर उधर से आगमन । घूमते फिरते आ जाना या जा पहुँचना । जैसे,—वे कभी तो मेरे यहाँ फेरा करेंगे । उ॰— (क) पींजर महँ जो परेवा घेरा । आप मजार कीन्ह तहँ फेरा ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) जहँ सतसंग कथा माधव की सपनेहु करत न फेरो ।—तुलसी (शब्द॰) ।

५. लौटकर फिर आना । पलटकर आना । जैसे,—इस समय तो जा रहा हूँ, फिर कभी फेरा करूँगा । उ॰—कहा भयो जो देश द्वारका कीन्हों जाय बसेरो । आपुन ही या ब्रज के कारन करिहैं फिरि फिरि फेरो ।—सूर (शब्द॰) ।

६. आवर्त । घेरा । मंडल । †

७. भिक्षा माँगना ।