बंक
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]बंक ^१ वि॰ [सं॰ वक्र, वङ्ग]
१. टेढ़ा । तिरछा । उ॰—कोउ झिझकारें कोउन, बंक जुग मौंह मरोंरैं ।—प्रेमघन॰, भाग १, पृ॰ १० ।
२. पुरुषार्थी । विक्रमशाली ।
३. दुर्गम । जिस तक पहुँच न हो सके । उ॰—(क) जो बंक गढ़ लंक सो ढका ढकेलि ढाहिगो ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) लंक से बंक महागढ़ दुर्गम ढाहिबे दाहिबे को कहरी है ।—तुलसी (शब्द॰) ।
बंक ^२ संज्ञा पुं॰ [अं॰ बैंक] वह कार्यालय या संस्था जो लोगों का रुपया सूद देकर अपने यहाँ जमा करती अथवा सूद लेकर लोगों को ऋण देती है । लोगों की हुंडियाँ लेती और भेजती है तथा इसी प्रकार के दूसरे महाजनी के कार्य करती है ।