बंचना
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]बंचना ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ वच्चना] ठगी । धुर्तता ।
बंचना पु † ^२ क्रि॰ स॰ [सं॰ वच्चन] ठगना । छलना । उ॰— बंचेहु मोहि जौन धरि देहा । सोइ तनु धरहु साप मम एहा ।—तुलसी (शब्द॰) ।
बंचना पु ^३ क्रि॰ स॰ [सं॰ वाचन] बाँचना । पढ़ना ।
बंचना पु † क्रि॰ सं॰ [हिं॰ बाँचना] बांच लेना । पढ़ लेना । सभझ जाना । उ॰— ननदी ढिग आय नचाय कै नैन कछू कहि बैन भ्रुवैं कसि गी । बँचिगी सब मैं बिपरीत कथा नटनागर फदन मै फँसिगी ।— नट॰, पृ॰ ६१ ।