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बकसना

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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बकसना पु क्रि॰ स॰ [फा॰ बख्श + हिं॰ ना(प्रत्य॰)]

१. कृपापूर्वक देना । प्रदान करना । उ॰— (क) प्रभु बकसत गज बाजि बसन मनि जय घुनि गगन निसान हये ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) नासिक ना यह सुक है व्याइ अनंग । वेसर को छवि बकसत मुकुतन संग ।— रहीम (शब्द॰) ।

२. छोड़े देना । क्षमा करना । माफ करना । उ॰— (क) तब देवकी अधीन कह्यो यह मैं नहिं बालक जायो । यह कन्या मोहि बकस बीर तू कीजै मो मन भायो ।— सूर (शब्द॰) । (ख) पूत सपूत भयो कुल मेरे अब में जानी बात । सूरश्याम अव लौ तोहि बकस्यों तेरी जानी घात ।—सूर (शब्द॰) ।