बकुची
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]बकुची ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ बाकुची] औषध के काम में प्रयुक्त होनेवाले एक पौधे का नाम । पर्या॰—सोमराजी । कृष्णफल । वाकुची । पूतिफला । बेजानी । कालमेषिका । अबल्गुजा । ऐंदवी । शूलोत्था । कांबोजी । सुपर्णिका । विशेष— यह पौधा हाथ, सवा हाथ ऊँचा होता है । इसकी पत्तियाँ एक अगुल चौड़ी होती हैं और डालियाँ पृथ्वी से अधिक ऊँची नहीं होतीं तथा इधर उधर दूर तक फैलती हैं । इसका फूल गुलाबी रंग का होता है । फूलों के झड़ने पर छोटी छोटी फलियाँ घोद में लगती हैं जिनमें दो से चार तक गोल गोल चौड़े और कुछ लबाई लिए दाने निकलते हैं । दानों का छिलका काले रग का, मोटा और ऊपर से खुरदार होता है । छिलके के भीतर सफेद रंग की दो दालें होती हैं जो बहुत कड़ी होती हैं और बड़ी कठिनाई से टूटती हैं । बीज से एक प्रकार की सुगंध भी आती है । यह औषध में काम आता है । वैद्यक में इसका स्वाद मीठापन और चरपरापन लिए कड़ुवा बताया गया है और इसे ठंढ़ा, रुचिकर, सारक, त्रिदोषध्न और रसायन माना है । इसे कुष्टनाशक और त्वग्रोग की औषधि भी बतलाया है । कहीं कहीं काले फूल की भी बहुत होती है ।
बकुची ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ बकुचा] छोटी गठरी । उ॰— देवी ने कपड़ों की एक छोटी सी बकुची बाँधी ।—मान॰, भा॰ ५, पृ॰ १३९ । मुहा॰—बकुची बाँधना या मारना = हाथ पैर समेटकर गठरी ले आकार का बन जाना । जैसे,— वह बकुची मारकर कूदा ।