बचन
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]बचन पु † संज्ञा पुं॰ [सं॰ वचन]
१. वाणी । वाक् । उ॰— तुलसी सुनत एक एकनि सों जो चलत विलोकि निहारे । मूकनि बचन लाहु मानों अंधन गहे हैं बिलोचन तारे ।— तुलसी (शब्द॰) ।
२. वचन । मुँह से निकला हुआ सार्थक शब्द । उ॰— (क) रघुकुल रीति सदा चलि आई । प्राण जाहु बरु बचन न जाई ।— तुलसी (शब्द॰) । (ख) कत कहियत दुख देन को, रचि रचि बचन अलीक । सबै कहाउर है लखै, लाल महाउर लीक ।— बिहारी (शब्द॰) । मुहा॰—बचन ड़ालना = माँगना । याचना करना । बचन तोड़ना वा छोड़ना = प्रतिज्ञा से विचलित होना । कहकर न करना । प्रतिज्ञा भंग करना । बचन देना = प्रतिज्ञा करना । बात हारना । उ॰—निदान यशोदा ने देवकी को बचन दे कहा कि तेरा वालक मैं रखूँगी ।— लल्लू (शब्द॰) । बचन पालना वा निभाना = प्रतिज्ञा के अनुसार कार्य करना । जो कुछ कहना वह करना । बचन बँधाना = प्रातिज्ञा कराना । वचन- वद्ध करना । उ॰— नंद यशोदा बचन बँधायो । ता कारण देही धरि आयो ।— सूर (शब्द॰) । बचन लेना = प्रातिज्ञा कराना । बचन हारना = प्रतिज्ञाबद्ध होना । बात हारना ।