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बजना

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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बजना ^१ क्रि॰ अ॰ [हिं॰ बाजा]

१. किसी प्रकार के आघात या हवा के जोर से बाजे आदि में से शब्द उत्पन्न होना । बोलना । जैसे, ड़ंका बजना, बाँसुरी बजना । उ॰— (क) परी मेरी ब्रजरानी तेरी बर बानी किधौं बानी हीं की बीणा सुख मुख में बजत है ।— केशब (शब्द॰) । (ख) मोहन तू या बात को, अपने हिये बिचार । बजत तँबूरा कहुँ सुने, गाँठ गठील तार ।— रसनिधि (शबेद॰) ।

२. किसी वस्तु का दूसरी वस्तु पर इस प्रकार पड़ना कि शब्द उत्पन्न हो । आघात पड़ना । प्रहार होना । जैसे, सिर पर डंडा या जूता बजना । उ॰— लोलुप भ्रमत गृहप ज्यों जहाँ तहँ सिर पदत्रा ण बजै । तदपि अधम बिचरत तेहि मारग कबहुँ न मूढ़ लजै ।—तुलसी (शब्द॰) ।

३. शस्त्रों का चलना । जैसे, लाठी बजना, तलवार बजना ।

४. अड़ना । हठ करना । जिद करना । उ॰— (क) प्रीति करी तुमसों बजि के सुबिसारि करी तुम प्रीति घने की ।— पद्माकर (शब्द॰) । (ख) घरी बजी घरियार सुनि, बजि कहत बजाइ बहुरि न पैहै यह घरी, हरि चरनन चित लाइ ।— रसनिधि (शब्द॰) ।

५. प्रख्याति पाना । प्रसिद्ध होना । कहलाना । उ॰— गुन प्रभुता पदवी जहाँ तहाँ बनै सब कार । मिलै न कछु फल आक ते बजै नाम मंदार ।— दीनदयाल (शब्द॰) ।

बजना † ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ वादन, वा हिं॰ बाजा]

१. वह जो बजता हो । बजनेवाला बाजा ।

२. रुपया । (दलाल) ।

बजना † ^३ संज्ञा पुं॰, स्त्री॰ [हिं॰ बजना + इया (प्रत्य॰)] बाजा बजानेवाला । उ॰— सेवक सकल बजनियाँ नाना । पूरन किए दान सनमान ।— तुलसी (शब्द॰) ।